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Janam Kundli: जन्म कुंडली स्वयं देखने का सरल तरीका

अक्सर आप ने जन्म कुण्डली के बारे में सुना होगा, परन्तु इस आसानी से आप अपनी या किसी की भी जन्म कुंडली देख सकते है, ये आप ने नही सोचा होगा।

यहां दिए गए साधारण  तरीके से आप ऐसा कर सकते है। किसी भी कुंडली मे 12 खाने या घर होते है जिन्हे भाव कहा जाता है। 

Janam Kundli: जन्म कुंडली स्वयं देखने का सरल तरीका

पहले घर को लग्न या पहला भाव कहा जाता है और लगन से अगला दूसरा भाव और तीसरा तीसरा भाव कहलाता है। आपके जन्म कुंडली के लग्न में एक से बारह तक कोई भी अंक हो सकता है। इन का भाव वार विश्लेषण इस तरह से किसी जाता है-

जन्म कुंडली कैसे देखें? 

1. लग्न या पहला भाव- पहले भाव से रंग, रूप, स्वभाव, जाति, कद, आयु, रोग, यश, धन, स्वास्थय, मस्तक आदि बातो का विचार किया जाता हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात ये है कि लग्न मे राशि कोई भी हो सकती है पर भाव वो पहला ही गिना जायेगा।

2. दूसरे भाव से धन व कुटुंब का विचार किया जाता है, इस भाव से मुख, भोजन, परिवार, वाणी, बहिन, माता के बड़े भाई, शासन, सत्ता आदि का विचार किया जाता है।

3. तीसरे भाव से पराक्रम, छोटे भाई, बहिन, पड़ोसी, परिश्रम आदि का विचार किया जाता है।

4. चतुर्थ भाव  से ऐश्वर्य, मां, वाहन, जायदाद, मित्र, ह्रदय, ससुर आदि का विचार किया जाता है.

5. पंचम भाव बुद्धि, अचानक धन लाभ, प्रेम संबंध, पूर्वजन्म, जुआ, सट्टा, बड़ी बहिन का पति, पिता की आयु, संतान आदि का विचार किया जाता है।

6. छ्टे भाव से रोग ऋण, शत्रु, मुकदमा, रूकावटे, मामा, जेल यात्रा, पेट के रोग, संतान का धन, पिता का भाग्य आदि का विचार किया  जाता है।

7. सप्तम भाव सांझेदारी का भाव कहलाता है। इस से व्यावसायिक पार्टनरशिप, पति पत्नी के आपसी सम्बन्ध, ग्रहस्थ जीवन, कामवासना, भतीजा, भतीजी का विचार किया जाता है।

8. अष्टम भाव मृत्यु भाव कहलाता हैं। इस भाव से आयु, मृत्यु का प्रकार, विदेश यात्रा, समुंद्री यात्रा, अचानक धन प्राप्ति, लाटरी आदि का पता चलता है। नाविकों या नोसैनिको की कुंडली मे अक्सर ये योग पाया जाता है।

9. नवम भाव को भाग्य भाव एवम् धर्म भाव कहते है। इस से धर्म, भावज, जीजा, साली, उच्च अथवा पौराणिक विद्या, तीर्थ, परलोक आदि का विचार किया जाता है।

10. दशम भाव को कर्म भी भाव कहा जाता है। इस भाव से कर्म, पिता, व्यापार, सरकार से सम्मान, सरकारी नोकरी, सास आदि का विचार किया जाता है। अक्सर सरकारी नौकरी वालो का ये भाव मजबूत पाया जाता है। 

11. एकादश भाव लाभ का भाव कहलाता है। व्यापार आदि मे लाभ, बड़ा भाई, दामाद, बहु आदि का विचार इस भाव से किया जाता है।

12. द्वादश भाव को व्यय भाव कहते है। इस भाव से खर्च, दान, मोक्ष, त्याग, दाम्पत्य सुख, मामी,कारागार, भोग विलास, चाचा, बुआ, फिजूल खर्ची, अय्याशी, विदेश यात्रा एवम् नींद का विचार करते है।

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