Ekadashi Kab Hai: एकादशी हिंदुओं के लिए एक बहुत ही पवित्र दिन है जो कि हर महीने में दो बार अर्थात कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में चंद्रमा के बढ़ते और घटते चरणो के ग्यारहवें दिन होता है। इस दिन काफी हिन्दू एकादशी का व्रत रखते हैं और जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
एकादशी को शरीर को शुद्ध करने और कायाकल्प का दिन माना जाता है। इस दिन उपवास करने वालों के द्वारा पौष्टिक आहार और अनाज का सेव नही किया जाता। इस दिन आप फल सब्जी और दूध से बने खाद्य पदार्थो का सेवन कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन किया जाता है।
सभी प्रकार के संयम की ये अवधि एकादशी के दिन सूर्योदय से शुरु हो कर एकादशी के अगले दिन सूर्योदय तक रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि एकादशी का उपवास करने से हानिकारक ग्रहों के दुष्परिणाम से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख, शान्ति और समृद्धि आती है। एकादशी के व्रत में चावल, दालें, लहसुन, प्याज और मांस मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
एकादशी कब है? एकादशी लिस्ट 2023
एकादशी का समय 11:53 AM जनवरी 31 से 02:01 PM 01 फरवरी
हिंदू कैलेंडर और एकादशी
एक कैलेंडर वर्ष में आमतौर पर 24 एकादशियां आती है अर्थात 12 एकादशी शुक्ल पक्ष की और 12 एकादशी कृष्ण पक्ष की आती है। कभी कभी किसी लीप वर्ष में दो अतिरिक्त एकादशी भी हो सकती है।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर तीन वर्ष में एक अतिरिक्त माह की गणना की जाती है जिसे अधिकमास कहा जाता है। इसे मलमास या पुरषोत्तम मास भी कहते है। इस वर्ष अधिकमास 2023 मंगलवार 18 जुलाई 2023 से बुधवार 16 अगस्त 2023 तक रहेगा। इसलिए वर्ष 2023 में 2 अतिरिक्त अर्थात 26 एकादशी रहेंगी।
हर माह की एकादशी का समय चंद्रमा की ग्रह चाल के अनुसार होता है। हिंदू कैलेंडर पंद्रह समान चापो में विभाजित होता है। पूर्णिमा से अगले पंद्रह दिनो तक प्रत्येक चाप चंद्रमा की चाल को दर्शाता है और प्रत्येक चाप एक चंद्र दिवस की प्रगति की गणना करता है जिसे हिंदू कैलेंडर में तिथि बोला जाता है।
एकादशी को आप आसान शब्दों में 11वीं तिथि, ग्यारस या 11वें चंद्र दिवस के रूप में समझ सकते हैं। ग्यारहवीं तिथि चंद्रमा के बढ़ते और घटते चरण से एकदम सटीक मेल खाती है, इसलिए शुक्ल पक्ष में चंद्रमा आपको पृथ्वी से अपने पूर्ण चमकते आकार का 3/4 भाग यानी 75 प्रतिशत ही दिखलाई देता है और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आपको चंद्रमा का 1 /4 भाग या 25 प्रतिशत चमकीला भाग ही दिखलाई पड़ता है।
एकादशी व्रत कथा
एकादशी का व्रत के महत्व से जुडी कई कहानियां हैं जिनमे से एकादशी व्रत से जुड़ी एक लोकप्रिय कहानी इस प्रकार से है।
एक बार की बात है मांधाता नाम का एक राजा था जो कि बहुत ही धर्म परायण और एक कुशल शासक था और वो बहुत ही बुद्धिमानी और न्याय प्रियता से अपने राज्य पर शासन करता था।
हालांकि राजा के अच्छे और नेक कामों के बावजूद उनका राज्य भीषण सुखे की चपेट में आ गया और अकाल पड़ गया और उनकी प्रजा भूख और प्यास से बुरी तरह से पीड़ित थी और हर तरफ त्राहि त्राहि मच गई।
इस विकट आपदा से छुटकारा पाने के लिए राजा मांधाता ने ऋषि मुनियों से परामर्श किया तो ऋषि मुनियों ने राजा को बताया कि अंगिरा नाम के एक ऋषि के श्राप के कारण ये सुखा पड़ा है। राजा के पूर्वज ने ऋषि अंगिरा का अपमान किया था जिसके परिणाम स्वरूप अंगिरा ऋषि ने हमारे राज्य को सूखे का श्राप दिया था।
ऋषियों ने राजा मांधाता को सलाह दी कि वे एकादशी व्रत का पालन करें और जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु से अपने पूर्वजों के पापो की क्षमा मांगे। राजा मान्धाता ने ऋषि मुनियों की सलाह का पालन किया और श्रद्धा पूर्वक एकादशी का व्रत किया।
राजा मांधाता की श्रद्धा पूर्वक भक्ति और तपस्या से प्रकट होकर, भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हुए और राजा मान्धाता ने भगवान विष्णु से अपने पूर्वजों के द्वारा किए गए जाने अंजाने पापो के लिए क्षमा याचना की और उनके राज्य में पड़े भीषण सुखे को समाप्त करने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने भक्त की भक्ति भाव से की गई साधना और प्रार्थना को स्वीकार किया और राजा के राज्य में प्रचुर वर्षा हुई और प्रजा को कष्टों से मुक्ति मिली।
उस दिन से, एकादशी हिंदुओ के लिए उपवास और प्रार्थना का एक महत्वपूर्ण दिन बन गया और ऐसा माना जाता है कि भक्तिभाव और हृदय की पवित्रता से एकादशी का व्रत करने से मनुष्यो को अपने पापो और जीवन में आ रही बाधाओं और दुखों को दूर करने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिल सकती है
इस प्रकार, राजा मांधाता की एकादशी व्रत की कहानी कई कहानियों में से एक है जो कि एकादशी का व्रत रखने और जगत के पालन कर्ता भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने की महिमा पर प्रकाश डालती है।
एकादशी के व्रत के दिन दान का भी बहुत महत्त्व बताया गया है और जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और अन्य सामान दान करते हैं और ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए अच्छे कर्मों से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है।
एकादशी पर चावल क्यों नहीं खाना चाहिए?
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। एक पुरानी कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा के सिर से पसीना नीचे गिरा और उस पसीने से एक राक्षस की उत्पत्ति हुई। जब राक्षस ने भगवान ब्रह्मा से रहने के जगह देने को कहा तो ब्रह्मा ने उन्हें एकादशी के दिन मनुष्यो द्वारा खाए गए चावल में रहने और पेट में कीड़े के रूप में परिवर्तित हो कर रहने के लिए कहा।
धार्मिक मान्यता के साथ साथ एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। ये एक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तथ्य है कि अमावस्या के ग्यारहवें दिन अर्थात शुक्ल पक्ष की एकादशी और पुर्णिमा के ग्यारहवें दिन यानी कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन वायुमंडलीय दबाव लगभग शून्य होता है।
एकादशी के अतिरिक्त किसी भी अन्य दिन उपवास रखना एक थकाने वाला अनुभव हो सकता है क्योंकि वायुमंडलीय दवाब उपवास रखने वाले के शरीर पर दबाव डालेगा। लेकिन एकादशी के दिन वायुमंडलीय दवाब लगभग शून्य होने से ऐसा नहीं होगा। इसलिए एकादशी के दिन उपवास रखने से हमारे शरीर को विशेष रूप आंत्र प्रणाली और संपूर्ण पाचन तंत्र को साफ करने का मौका मिलता है। इसे शरीर को डिटॉक्सिफाई करना भी कह सकते हैं।
एकादशी के अगले दिन पूर्णिमा से बारहवें दिन और अमावस से बारहवें दिन सुबह जल्दी भोजन करने का सुझाव दिया जाता है ताकी शरीर पर किसी भी प्रकार के वातावरण के दवाब से बचा जा सके।
विष्णु मंत्र
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