Gudiya Kab Hai 2023: हर वर्ष संपूर्ण भारतवर्ष में श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। आप जानते ही है कि भारत त्योहारों का देश है और यहां हर त्यौहार बड़ी ही श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश (यूपी) में इस दिन एक अनोखी परंपरा मनाई जाती है खासतौर पर कानपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में। इस दिन गुड़िया को पीटने की परंपरा निभाई जाती है जो कि एक प्राचीन कहानी पर आधारित है।
नागपंचमी पर क्या है गुड़िया को पीटने की परंपरा?
एक कहानी के अनुसार एक लड़की का भाई भगवान शिव का परम भक्त था और वह प्रतिदिन भगवान भोलेनाथ के मंदिर जाया करता था और श्रद्धापूर्वक भगवान शिव की पूजा अर्चना किया करता था।
भगवान शिव के मंदिर में उसे हर रोज 'नाग देवता' के दर्शन होते थे। वह लड़का रोज नाग देवता को दूध पिलाने लगा और धीरे धीरे दोनों में काफी प्रेम हो गया।
नाग देवता को उस लड़के से इतना प्रेम और विश्वास हो गया कि वो अपनी मणि छोड़ इस लड़के के पैरों से लिपट जाता था।
एक दिन श्रावण के महीने में दोनों भाई बहन एक साथ भगवान भोलेनाथ के मंदिर गए। मंदिर में जाते ही 'नाग' देवता लड़के को देखते ही उसके पैरों से लिपट गया।
लड़के की बहन ने जब यह नज़ारा देखा तो वह बहुत डर गई।उसे लगा कि नाग उसके भाई को डस लेगा। तब लड़की ने अपने भाई की जान बचाने के लिए नाग को डंडे से पीट पीट कर मार डाला।
इसके बाद जब लड़के ने पूरी कहानी अपनी बहन को बताई तो वह रोने लगी। वहां उपस्थित लोगों ने कहा कि 'नाग' देवता का रूप होते है, इसलिए तुम्हें इसका दंड तो अवश्य मिलेगा।
परंतु तुमसे यह पाप अनजाने में हुआ है क्योंकि तुम ने भय वश अपने भाई की जान बचाने के लिए नाग हत्या की है। इसलिए भविष्य में लड़की की जगह कपड़े की बनी हुई गुड़िया को पीटा जायेगा। इस तरह से गुड़िया पीटने की परंपरा शुरू हुई।
उत्तर प्रदेश के कानपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में खासतौर पर नागपंचमी के दिन पतंगे उड़ाई जाती है और गुड़ियों को पीटा जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन बहनें कपड़े की गुड़िया सड़क पर डालती है और भाई उस गुड़िया को डंडों से पीटते है।
इस परंपरा से जुड़ी एक अन्य कहानी के अनुसार तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या का विवाह राजा परीक्षित की चोथी पीढ़ी में हुआ।
उस कन्या ने अपनी ससुराल में एक महिला को इस रहस्य के बारे में बताकर किसी को भी इस बारे में न बताने को कहा, लेकिन उस महिला ने किसी और को बता दिया और धीरे धीरे यह खबर पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को इकठ्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। राजा इस बात से क्रोधित हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नही पचती है।
नाग पंचमी 2023 (Nag Panchami 2023)
सावन के महीने में वैसे तो दो नागपंचमी की तिथि आती है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष की, परंतु श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की नागपंचमी का विशेष महत्व है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार नाग को देवता माना जाता है। श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की नागपंचमी इस साल 21 अगस्त को मनाई जाएगी।
नाग पंचमी तिथि और मुहूर्त (Nag Panchmi Date and Muhurat)
शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का आरंभ 21 अगस्त 2023 सोमवार को मध्य रात्रि 12 बज कर 23 मिनट से होगा और समाप्ति 22 अगस्त 2023 को मध्य रात्रि 02 बज कर 01 मिनट पर होगी।
नागपंचमी शुक्ल पक्ष 2023 का पूजा मुहूर्त सोमवार 21 अगस्त 2023 को सुबह 5 बज कर 53 मिनट से सुबह 8 बज कर 30 मिनट तक रहेगा। ऐसे में नागपंचमी का व्रत 21 अगस्त 2023 सोमवार को रखा जाएगा।
नागपंचमी की पूजा विधि (Nag Panchmi ki Puja Vidhi)
नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। नागपंचमी के दिन वासुकी, अनंत, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलिर, कर्कट, शंख नामक अष्ट नाग देवताओं की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
नागपंचमी से एक दिन पहले अर्थात चतुर्थी तिथि को एक समय भोजन करना चाहिए। अगले दिन पंचमी तिथि को नागपंचमी का व्रत रखें। व्रत की समाप्ति के पश्चात पंचमी तिथि की रात्रि को भोजन किया जा सकता है।
नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने के लिए सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी लेकर उस पर मिट्टी से नाग देवता की आकृति (प्रतिमा) बनाएं। इसके बाद नाग देवता पर हल्दी, सिंदूर, अक्षत (बिना टूटा हुआ साबुत चावल) और फूल अर्पित करें।
इसके बाद कच्चे दूध अर्थात बिना गर्म किए हुए दूध में थोड़ा सा घी और चीनी मिलाकर नाग देवता का अभिषेक करें और शेषनाग देवता और भगवान शिव का स्मरण करें।
पूजा समाप्ति के बाद अंत में नाग देवता की कथा का पाठ करें और आरती पढ़ें और किसी जरूरतमंद व्यक्ति को यथा शक्ति दान दे।
नागपंचमी की कथा
प्राचीन समय में एक सेठ के सात पुत्र थे और सभी का विवाह सम्पन्न हो चुका था। सेठ के सबसे छोटे बेटे की पत्नी बहुत ही अच्छे चरित्र और नेक दिल थी, परंतु उसका कोई भाई नहीं था और इस कारण वह अक्सर उदास हो जाया करती थी।
एक दिन घर की सबसे बड़ी बहू ने घर को पीली मिट्टी से लीपने के लिए सभी बहुओं को अपने साथ चलने को कहा। सभी बहुएं हाथ में खुरपी और परात लेकर पास में ही जाकर मिट्टी खोदने लगी।
जब वे मिट्टी खोद रही थी, तभी वहां मिट्टी के नीचे से एक सांप निकल आया जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहु ने उसे रोकते हुए कहा, मत मारो इसे, यह बेचारा निरपराध है।
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नही मारा और वह सर्प एक और जा बैठा। तब छोटी बहु ने उस सर्प से कहा कि हम अभी लौट कर आती है, तुम यहां से जाना मत।
यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और घर के कामकाज में फंसकर सर्प से जो वादा किया था, उसे भूल गई।
दूसरे दिन उसे वह बात याद आई तो वह सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उसी स्थान पर बैठा देखकर बोली सर्प भैया नमस्कार ! सर्प ने कहा, तू मुझे भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात करने के कारण तुझे अभी डस लेता।
वह बोली-भैया, मुझसे भूल हो गई, इसलिए क्षमा मांगती हूं। तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना है, मांग ले। वह बोली-भैया, मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।
कुछ दिन बीतने के बाद वह सर्प मनुष्य का रूप धारण करके उसके घर आया और बोला कि मेरी बहन को भेज दो। सबने कहा कि इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला कि में दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं। बचपन में ही बाहर चला गया था।
उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगो ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया। उसने रास्ते में छोटी बहू को बताया कि में वही सर्प हूं, इसलिए तुम डरना नहीं और जहां पर चलने में कठिनाई हो, मेरी पूंछ पकड़ लेना।
छोटी बहू ने उसके कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहां का धन ऐश्वर्य को देखकर वह चकित रह गई।
एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- में एक जरूरी काम से बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात याद नहीं रहीं और उसने सर्प भाई को गर्म दूध पिला दिया, जिससे सर्प का मुंह बुरी तरह से जल गया।
यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई, परंतु सर्प के समझाने पर वह शांत हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए।
तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सारा सोना, चांदी, जवाहरात, वस्त्र और आभूषण देकर सम्मान सहित सर्प भाई उसे उसके घर छोड़ने आया।
इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए।
सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दी। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- इन वस्तुओं को झाड़ने के लिए झाडू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाड़ू भी सोने की लाकर रख दी।
सर्प ने छोटी बहू को हीरे मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि सेठ की छोटी बहू का हार यहां आना चाहिए।
राजा ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि सेठ के घर जाकर उससे वह हार लेकर शीघ्र ही मेरे सामने उपस्थित हो। मंत्री ने सेठ जी के घर जाकर सेठ जी से कहा कि महारानी जी आपकी छोटी बहू का हार पहनेंगी। सेठ जी ने राज भय के कारण छोटी बहू से हार मंगवा कर मंत्री को दे दिया।
छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने अपने सर्प भाई को याद किया और सर्प भाई के आने पर प्रार्थना की- हे भैया, रानी ने आपका दिया हुआ हार मुझसे छीन लिया है।
तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में हो तो वह हार सर्प बन जाए और जब रानी मुझे मेरा वह हार वापिस लौटा दे तो हीरे और मणियों का हो जाए।
सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने वह हीरे मणियों वाला हार पहना, वैसे ही वह हार सर्प बन गया। यह देख कर रानी चीख पड़ी और जोर जोर से रोने लगी।
यह देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठ जी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा। सेठ जी छोटी बहू को साथ लेकर राजा के सामने उपस्थित हुए।
राजा ने छोटी बहू से पूछा- तूने क्या जादू किया है, मैं तुझे दंड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन! धृष्टता क्षमा कीजिए। यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरे और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है।
यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा कि इसे अभी मेरे सामने पहन कर दिखाओ। जैसे ही छोटी बहू ने वह सर्प बना हार अपने गले में डाला, वह हीरे मणियों के हार में बदल गया।
यह देखकर राजा को उसकी बात पर विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं छोटी बहू को पुरुस्कार में दी। छोटी बहू खुशी खुशी अपने हार, स्वर्ण मुद्राएं और अपने ससुर के साथ अपने घर लौट आई।
उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से बहुत धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा ठीक ठीक बता कि तुझे यह धन कौन देता है?
तब वह सर्प भाई को याद करने लगी। तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि कोई मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह करेगा, मैं उसे खा लूंगा।
यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बहुत आदर सत्कार किया। उसी दिन से नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती है।
नाग पंचमी की आरती
नागपंचमी का महत्व (Importance of Nag Panchmi)
हिंदू मान्यताओं के अनुसार नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से व्यक्ति को नाग भय नहीं रहता और सर्पदंश से रक्षा होती है।
जिन लोगों की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष होता है, उन्हें सावन माह की शुक्ल पक्ष की नागपंचमी के दिन नागपंचमी की पूजा करने से कालसर्प दोष से राहत मिलती है।
इस दिन यदि भगवान शिव के मंदिर में जाकर यदि शिवलिंग पर विराजमान शेषनाग देवता को कच्चे दूध (थैली वाला दूध न ले) से नहलाने और दूध पिलाने से देवीय कृपा प्राप्त होती है। इस दिन घर के दरवाजे पर सांप का चित्र बनाने की भी परंपरा है।
नाग देवता को धन दायक देवता भी कहा जाता है। अक्सर आपने सुना होगा कि बहुत बड़े प्राचीन खजानों की रक्षा नाग करते है या जहां पर जमीन में धन गढ़ा हुआ होता है, अक्सर वहां सर्प की उपस्थिति होती है।नाग देवता की पूजा करने से धन प्राप्ति के योग बनते है।
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