चौथ माता की कहानी (Chauth Mata Ki Kahani) हर महीने की चौथ के व्रत के समय पूरी श्रद्धा और विश्वास से कही व सुनी जाती है। इसके बाद भगवान श्री गणेश जी की कहानी सुनी जाती है।
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चौथ माता की कहानी
एक नगर में एक बूढ़ी मां अपने बेटे के साथ रहती थी। वह अपने बेटे की सलामती के लिए बहुत ही श्रद्धा और विश्वास से बारह महीने की चौथ के व्रत किया करती थी।
हर महीने चौथ व्रत के दिन वह पंसारी से थोड़ा सा गुड़ और देसी घी लाकर उसके चार लड्डू बनाती। एक लड्डू से वह चौथ माता की पूजा करती, एक हथकार के लिए निकालती, एक लड्डू अपने बेटे को खाने के लिए देती और एक लड्डू चांद उगने पर खुद खा लेती थी।
एक बार उसका बेटा अपनी ताई से मिलने के लिए गया। ताई ने उस दिन बैसाख चौथ का व्रत रखा हुआ था। वह लड़का अपनी ताई से बोला कि मेरी मां तो बारह महीने चौथ के व्रत रखती है।
ताई बोली कि तेरी मां तेरी कमाई से तर माल खाने के लिए बारह चौथ रखती है। तू परदेश चला जाए तो वह बारह चौथ तो क्या, एक भी चौथ नहीं करेगी। लड़के को लगा कि ताई सच कह रही है।
घर वापिस आकर लड़के ने अपनी मां से कहा कि मैं परदेश जा रहा हूं, यहां तो तू मेरी कमाई खाने पीने में ही उड़ा देती है। मां ने अपने लड़के को बहुत समझाया परंतु वह नहीं माना और परदेश जाने की जिद पर अड़ा रहा।
थक हार कर मां ने उसे परदेश जाने की इजाजत दी। मां ने बेटे को अपने साथ ले जाने के लिए चौथ माता के आखे दिए और कहा कि मुसीबत में ये आखे तेरी मदद करेंगें। लड़का आखे लेकर परदेश रवाना हो गया।
घूमते हुए वह एक नगर में पहुंचा। उसने देखा कि एक बूढ़ी मां पुए बना रही थी और रोते जा रही थी। उसने इसका कारण पूछा तो बूढ़ी मां ने बताया कि बेटा, इस नगर की पहाड़ी पर एक दैत्य रहता है। पहले वह नगर में आकर अपने खाने के लिए कई लोगों को मार देता था।
अब राजा बारी से एक आदमी रोज उस दैत्य के पास उसके खाने के लिए भेजता है। आज मेरे बेटे की उस दैत्य के पास जाने और उसका भोजन बनने की बारी है। इसलिए मैं रो रही हूं और अपने बेटे के लिए पुए बना रही हूं।
वह लड़का बूढ़ी मां से बोला कि तू ये पुए मुझे खिला दे, तेरे बेटे की जगह मैं उस दैत्य के पास चला जाता हूं। बूढ़ी मां ने खीर पुए उसे खिला दिए। खीर पुए खाकर वह लड़का सो गया।
रात को राजा के सैनिक आए तो बूढ़ी मां ने सैनिकों के साथ उस लड़के को भेज दिया। दैत्य के सामने पहुंचने पर उसने चौथ माता के आखे दैत्य की तरफ फेंक दिए।
और कहा कि है चौथ माता, यदि मेरी मां मेरी सलामती के लिए आपका व्रत रखती है तो इस दैत्य का सिर कटकर गिर जाए।तुरंत ही उस दैत्य का सिर कटकर जमीन पर गिर गया।
लड़का सुरक्षित नगर में वापिस आ गया। राजा ने खुश होकर बहुत से उपहार देकर सम्मान सहित उसे विदा किया।
लड़का घूमते हुए एक दूसरे राजा के नगर में पहुंचा। इस राज्य में आवा तभी पकता था जब किसी इंसान की बलि दी जाती थी। राजा के सैनिकों ने उस लड़के को पकड़ लिया और आवे में चुन दिया।
लड़के ने आखे आवे में डाले और कहा कि है चौथ माता, यदि मेरी मां मेरी सलामती के लिए आपका व्रत रखती है तो ये आवा मेरी बलि लिए बिना ही तुरंत पक जाए।
आवा तुरंत पक गया। आवे में से मिट्टी के बर्तनों की जगह सोने और चांदी के बर्तन निकले। अंदर से लड़का बोला कि बर्तन धीरे धीरे निकालना, मुझे लग ना जाए।
राजा ने उसे आवे से बाहर निकलवाया और पूछा कि तुम आवे से कैसे बच गए? लड़के ने राजा को बताया कि मेरी मां मेरी सलामती के लिए चौथ माता का व्रत रखती है।
चौथ माता के व्रत के प्रताप से ही वह आवे में भस्म होने से बच गया। राजा को उस लड़के की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
राजा ने एक चांदी की सुराही मंगवाई और कहा कि तुम इस सुराही की नली से निकल कर दिखाओ, तभी मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन होगा।
लड़के ने चौथ माता को याद करके आखे सुराही में डाले और कहा कि मैं भंवरा बन सुराही से निकलू। तुरंत ही लड़का भंवरा बन कर सुराही की नली से बाहर निकल आया।
राजा ने खुश होकर अपनी राजकुमारी का विवाह उस लड़के के साथ करवाया और राज्य के सभी लोगों को चौथ माता का व्रत करने को कहा।
कुछ समय के बाद उस लड़के को अपनी बूढ़ी मां की याद आई। उसने राजा के पास जाकर अपने नगर जाने की इच्छा जाहिर की।
राजा ने हाथी, घोड़ा, रथ और बहुत सारा दान दहेज देकर अपनी बेटी और दामाद को उसके नगर जाने के लिए विदा किया।
चौथ के दिन वह अपने नगर पहुंचा। उसने सोचा कि आज चौथ है, तो मां आज पंसारी से घी और गुड़ लेने जरूर आएगी।
वह अकेला पंसारी के यहां अपनी मां का इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद लकड़ी टेकती हुई उसे उसकी बूढ़ी मां आती हुई दिखाई दी।
उसकी मां की आंखों में जाला आने के कारण उसे कुछ कम दिखाई देने लगा था। लड़के ने जानबूझकर अपना पैर अपनी मां की लकड़ी को लगा दिया और बोला बल रे पूत काटी मेरे पैर को लगा दी।
मां ने उसे नहीं पहचाना। वह बोली भैया, मुझे चाहे कितनी ही गाली निकाल लो परंतु मेरे बेटे को कुछ मत कहना।
बेटा अपनी मां के चरणों में गिर पड़ा और मां से बोला कि मां, मैं ही तेरा बेटा हूं। मुझे माफ कर दो। मां ने उसे गले से लगा लिया।
नगर के लोगों को यह विश्वास ही नहीं हुआ कि वह उस बूढ़ी मां का बेटा है। बूढ़ी मां ने चौथ माता को याद करके कहा कि हे चौथ माता, यदि मैं अपने बेटे के लिए आपका व्रत रखती हूं तो मेरे स्तन में दूध भर जाए और उस दूध की धार मेरे बेटे के मुंह में गिरे।
तुरंत ही बूढ़ी मां के स्तन से दूध की धार निकली और बेटे के मुंह में गिरने लगी। सभी लोग चौथ माता की जय जयकार करने लगे। इसके बाद उस नगर के सभी लोग चौथ माता का व्रत करने लगे।
हे चौथ माता, जैसे आपने बूढ़ी मां और उसके बेटे की सहायता की, वैसे ही हमारी भी सहायता करना। इस कहानी को कहने, सुनने और हुंकारा भरने वालों पर अपनी कृपा करना।
बोलो चौथ माता की जय !!!
चौथ माता की आरती (Chauth Mata Ki Aarti)
चौथ माता की आरती मुख्यत: करवा चौथ के पवित्र और पावन दिन पर की जाती है, लेकिन इसके अतिरिक्त प्रत्येक चतुर्थी तिथि को भी चौथ माता की आरती गाने और सुनने का विधान है।
चौथ माता की आरती को श्रद्धापूर्वक गाने से चौथ माता सभी प्रकार के कष्टों और विघ्नों और बाधाओं को दूर करती है। जो भी सुहागिन महिलाएं चौथ माता की आरती गाती या सुनती है, उनका दांपत्य जीवन सुखमय बना रहता है। परिवार में सभी प्रकार की खुशियों और धन संपति का स्थाई निवास रहता है और बच्चो को दीर्घायु प्राप्त होती है।
ओम जय श्री चौथ माता, बोलो जय श्री चौथ माता
सच्चे मन से सुमिरे, सब दुःख दूर भया
ओम जय श्री चौथ माता
ऊंचे पर्वत मंदिर, शोभा अति भारी
देखत रूप मनोहर, असुरन भयकारी
ओम जय श्री चौथ माता
महासिंगार सुहावन, ऊपर छत्र फिरे
सिंह की सवारी सोहे, कर में खड्ग धरे
ओम जय श्री चौथ माता
बाजत नौबत द्वारे, अरु मृदंग डैरू
चौसंठ जोगन नाचत, नृत्य करे भैरू
ओम जय श्री चौथ माता
बड़े बड़े बलशाली, तेरा ध्यान धरे
ऋषि मुनि नर देवा, चरणों आन पड़े
ओम जय श्री चौथ माता
चौथ माता की आरती, जो कोई सुहागिन गावे
बढ़त सुहाग की लाली, सुख संपति पावे
ओम जय श्री चौथ माता
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