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Sakat Chauth Vart Katha: Ganesh Ji Ki Kahani

सकट चौथ व्रत कथा : सकट चौथ हिंदुओं का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार को सभी हिंदू बहुत ही श्रद्धा और विश्वास से मनाते हैं। 

सकट चौथ व्रत को सभी महिलाएं अपनी संतान के सुखी जीवन और लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। चंद्र देवता के दर्शन करने के बाद और चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद फलाहार लिया जाता है। 

Sakat Chauth Vart Katha: Ganesh Ji Ki Kahani

सकट चौथ का त्यौहार माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसे सकट चौथ, तिलकुट चौथ, तिलकुट चतुर्थी, माघी चौथ और तिल चौथ  के नाम से भी जाना जाता है। 

इस बार सकट चौथ का त्यौहार 10 जनवरी 2023 को मनाया जा रहा है।  इस दिन गणेश जी महाराज का व्रत रक्षा जाता है और शाम को कथा  पढ़कर पूजा अर्चना की जाती है और सकट चौथ की कहानी सुनी या सुनाई जाती है। 

सकट चौथ की बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं जैसे भगवान शंकर और गणेश जी की कहानी, कुम्हार की कहानी और गणेश जी और बुढ़िया माई की कहानी भी सुनी जाती है। 

सकट चौथ के अवसर पर हम आपको सकट चौथ की 4 कहानियां सुना रहे हैं जो इस प्रकार से हैं। आप अपने अनुसार इनमें से किसी भी कहानी को शाम को गणेश जी के पूजन के समय सुन या सुना सकते हैं। 

सकट चौथ व्रत कथा (गणेश जी की कहानी)

एक साहूकार था और  साहुकारणी थी। दोनों का धर्म-कर्म और दान-पुण्य में कोई विश्वास नहीं था। उनकी कोई औलाद भी नहीं थी। 

एक दिन साहुकारनी अपनी पड़ोसन के घर गई। उस दिन सकट चौथ का दिन था और पड़ोसन सकट चौथ की पूजा कर रही थी। 

साहुकारनी ने पड़ोसन से पूछा कि यह तुम क्या कर रही हो, तब पड़ोसन ने साहुकारनी को बताया कि आज सकट चौथ का व्रत है और इसलिए मैं सकट चौथ की पूजा कर रही हूं। 

साहुकारनी ने पड़ोसन से पूछा कि इस व्रत को करने से क्या फल प्राप्त होता है। पड़ोसन ने साहुकारनी को बताया इस व्रत को करने से धन धान्य, सुहाग और पुत्र सब कुछ मिलता है। 

इसके बाद साहुकारनी बोली अगर मेरा बच्चा हो गया तो मैं सवा सेर तिलकुट करूंगी और चौथ का व्रत भी रखूंगी। इसके बाद गणेश जी महाराज ने साहुकारनी की प्रार्थना स्वीकार कर ली और वह गर्भवती हो गई। 

गर्भवती होने के बाद साहुकारनी ने कहा अगर मेरा लड़का हो जाए तो मैं ढाई सेर तिलकुट करूंगी और कुछ दिन बाद उस साहुकारनी का लड़का हो गया। 

इसके बाद साहुकारनी बोली भगवान मेरे बेटे का विवाह हो जाए तो सवा पांच सेर का तिलकुट करूंगी। भगवान गणेश जी ने उसकी यह फरियाद भी सुन ली।  

शीघ्र ही लड़के का विवाह तय हो गया। सब कुछ होने के बावजूद भी साहुकारनी ने तिलकुट नहीं किया।

इस कारण सकट देवता क्रोधित हो गए। उन्होंने जब साहुकारनी का बेटा फेरे ले रहा था तो उन्होंने उसे फेरों के बीच से उठाकर पीपल के पेड़ पर बैठा दिया। 

इसके बाद सब लोग वर को ढूंढने लगे। जब वर नहीं मिला तो लोग निराश होकर अपने घर को लौट गए। 

जिस लड़की से साहुकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था एक दिन वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजन करने के लिए जंगल में घास लेने गई।  

तभी उसे पीपल के पेड़ से एक आवाज आई ओ मेरी अर्ध ब्याही, ऐसी आवाज सुनकर लड़की घबरा गई और डरती हुई अपने घर पहुंची। 

लड़की की मां ने जब उससे घबराने की वजह पूछी तो उसने सारी बात अपनी मां को बताई। 

तब लड़की की मां पीपल के पेड़ के पास गई और जाकर देखा  तो पता चला कि पेड़ पर बैठा शख्स तो उसका जमाई है। 

लड़की की मां ने जमाई से कहा कि यहां क्यों बैठे हो मेरी बेटी तो तुमने अर्ध ब्याही कर दी, अब क्या चाहते हो? 

इस पर साहुकारनी का बेटा बोला कि मेरी मां ने सकट चौथ पर तिलकुट बोला था लेकिन वह अभी तक नहीं किया हैं और इससे सकट देवता नाराज है। 

और उन्होंने मुझे यहां पर बैठा दिया है। यह बात सुनकर लड़की की मां साहुकारणी के घर गई और उससे पूछा कि तुमने सकट चौथ के लिए कुछ बोला था क्या? 

साहुकारनी बोली हां मैंने तिलकुट बोला था जो मैं अभी तक नहीं कर पाई हूं उसके बाद साहुकारनी ने फिर कहा कि है सकट चौथ महाराज, अगर मेरा बेटा घर वापस आ जाए तो मैं ढाई मन का तिलकुट करूंगी। 

इस पर गणपति जी महाराज ने फिर से उसे एक मौका दिया और उसके बेटे को वापस भेज दिया। 

उसके बाद साहूकारनी ने बेटे का धूम धाम से विवाह किया। साहुकारनी के बेटा और बहू घर आ गए तब साहुकारनी ने ढाई मन का तिलकुट किया और बोली है।

सकट देवता आपकी कृपा से मेरे बेटे पर आया संकट दूर हो गया और मेरा बेटा बहु सकुशल घर आ गए हैं। अब मैं हमेशा आपका सकट चौथ का व्रत करूंगी। 

उसके बाद से सभी नगरवासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारंभ कर दिया।

         बोल गणपति गणेश जी महाराज की जय 

गणेश जी और बुढ़िया माई की कहानी

एक बुढ़िया थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थी। उसका एक बेटा और बहु थी। वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। 

एक दिन गणेश जी ने उसकी पूजा से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और बुढ़िया से बोले हे बुढ़िया मां, तू जो चाहे मुझसे वरदान मांग ले। 

बुढ़िया माई गणेश जी से बोली कि है भगवन मुझे तो मांगना भी नहीं आता, क्या और कैसे मांगू। 

तब गणेश जी बोले अपने बहू और बेटे से पूछ कर मांग ले, तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा गणेश जी कहते हैं तू कुछ मांग ले तो बता मैं क्या मांगू। 

पुत्र ने कहा मां तू धन मांग ले, बहु से पूछा तो बहू ने कहा कि नाती मांग ले। तब बुढ़िया ने सोचा कि यह सब अपने अपने मतलब की बात कर रहे हैं। 

तो उसने अपने पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने कहा बुढ़िया तू तो थोड़े दिन ही जिएगी, क्यों तू धन और नाती मांग रही है, तू अपनी आंखों की रोशनी मांग ले जिससे तेरा बुढ़ापा आराम से कट जाएगा। 

इसके बाद बुढ़िया गणेश जी के पास गई और गणेश जी से बोली कि यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे 9 करोड़ की माया दे, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दे, आंखों की रोशनी दे, नाती दे, पोता दे और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें। 

बुढ़िया की बात सुनकर गणेश जी हंसते हुए बोले हे बुढ़िया मां तुमने तो हमें ठग लिया फिर भी तुमने जो मांगा है वचन के अनुसार सब हम तुम्हें देगें और यह कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए। 

उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ भी गणेश जी महाराज से मांगा था उसे वह सब कुछ मिल गया। गणेश जी महाराज जैसे आपने उस बुढ़िया को सब कुछ दिया वैसे ही सबको देना। 

बोल संकट हर्त्ता विघ्न विनाशक गणेश जी महाराज की जय

शिव जी और गणेश जी की कथा

माता पार्वती एक बार स्नान करने गई। स्नान घर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर ना आऊं, तब तक किसी को भी भीतर आने की इजाजत मत देना। 

गणेश जी अपनी माता पार्वती की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने के लिए आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। 

भगवान शिव ने इसे अपना अपमान महसूस किया और इससे बेहद आहत हुए गुस्से में उन्होंने भगवान गणेश जी पर त्रिशूल का वार किया जिससे उनकी गर्दन कट कर दूर जा गिरी।

स्नान करने के बाद शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आई तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। यह देखकर वह रोने लगी और उन्हें भगवान शिव से शिव जी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दे। 

इस पर शिवजी महाराज ने माता पार्वती से कहा कि ठीक है, मैं जंगल में जा रहा हूं मुझे जो भी पहला प्राणी दिखाई देगा मैं उसकी गर्दन काट कर इस बालक के सिर पर लगा दूंगा और इसे जीवित कर दूंगा। 

कुछ दूर चलने पर शिवजी महाराज को एक हाथी का बच्चा दिखाई दिया और शिव जी महाराज ने अपने वचन के अनुसार उस हाथी के बच्चे का मस्तक काटकर गणेश जी महाराज को लगा दिया और उन्हें दूसरा जीवन दिया। 

तभी से गणेश जी की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से सभी महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।

बोल गणेश जी महाराज की जय 

सकट माता और कुम्हार की कहानी

एक प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के राज में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आवा लगाया तो आवा नही पका। 

बार बार नुकसान होता देखकर कुम्हार एक तांत्रिक के पास गया और तांत्रिक से मदद मांगी। 

तांत्रिक ने उसे एक बालक की बलि देने के लिए कहा। तांत्रिक के कहने पर कुमार ने एक छोटे बच्चे को आवा में डाल दिया उस दिन संकट चतुर्थी थी। 

उस बालक की मां को जब इस बारे में पता चला तो उस बालक की मां ने अपनी संतान के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान गणेश जी से प्रार्थना की। 

कुम्हार जब अपने बर्तनों को देखने गया तो उसे सारे बर्तन पके हुए ही मिले और साथ ही बालक भी सुरक्षित मिला। इस घटना के बाद कुम्हार बहुत डर गया और उसने राजा के सामने जाकर पूरी कहानी सुनाई। 

उसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाली सकट चौथ की महिमा का गुणगान किया। 

तभी से महिलाएं अपनी संतान और अपने परिवार की कुशलता और सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगी। 

बोल सकट माता की जय। गणेश जी महाराज की जय

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