Nirjala Ekadashi 2024: निर्जला एकादशी व्रत की हिंदू धर्म में बहुत मान्यता है। ये व्रत हर साल मई माह के आखिर में या जून माह में आता है। यह व्रत हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखने से धन, समृद्धि, स्वास्थ्य, लम्बी आयु और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी का व्रत बहुत कठिन माना जाता है। निर्जला एकादशी का नाम संस्कृत भाषा के शब्द "निर्जला" के नाम पर रखा गया है जिसका अर्थ होता है "पानी के बिना"। इसका मतलब यह है कि जो भी इस व्रत को रखते है वे पूरे दिन और रात में भोजन या पानी का सेवन नहीं करते है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व रखती है और उपवास और तपस्या के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। निर्जला एकादशी के दिन स्वयं को शुद्ध करने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है जो जगत के संरक्षक और पालनहार है। भगवान विष्णु को पृथ्वी को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए विभिन्न रूपों में अवतार लेने के लिए जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और उनका आशीर्वाद मिलता है।
निर्जला एकादशी के अन्य नाम
निर्जला एकादशी को ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी,पांडव भीम एकादशी, भीमसेन एकादशी, पांडव निर्जला एकादशी, पांडव एकादशी, भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी का शुभ मुहुर्त
निर्जला एकादशी की तारीख 18 जून
निर्जला एकादशी का दिन मगंलवार
एकादशी तिथि प्रारंभ 17 जून 2024 को सुबह 04:42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त 18 जून 2024 को सुबह 06:23 बजे, उदयातिथि को आधार मानते हुए इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून 2024 को रखा जाएगा।
निर्जला एकादशी पारण का समय 19 जून 2024 को सुबह 05:24 से सुबह 07:28 तक
निर्जला एकादशी पूजा सामग्री
निर्जला एकादशी की पूजा के लिए आपको जिन पूजा सामग्री की आवश्कता पड़ेगी,वे इस प्रकार से है।
भगवान विष्णु का चित्र, फूल, फल, मिठाई, नारियल, धूप, कपूर, पंचामृत, पान, सुपारी, लौंग, चंदन, देसी घी, अक्षत, दीपक और तुलसी के पत्ते। तुलसी पत्र आप एकादशी से एक दिन पहले ही तोड़ कर रख ले।
एकादशी के दिन तुलसी पत्ते क्यों नहीं तोड़ने चाहिए?
भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है और विष्णु जी की पूजा तुलसी पत्र के बिना अधूरी मानी जाती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार माता तुलसी का विवाह देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु से करवाने की परंपरा है। माता तुलसी हर एकादशी के दिन भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती है।
ऐसे में निर्जला एकादशी के दिन तुलसी को अगर जल दिया जाता है तो इससे उनका व्रत खंडित हो जायेगा और तुलसी पत्ते तोड़ने से उनका ध्यान भी भंग होगा, इसलिए एकादशी के दिन तुलसी को जल देना और तुलसी पत्र तोड़ना मना किया जाता है। ग्रहण के समय सूर्यास्त के बाद भी तुलसी को जल या तुलसी पत्र तोड़ना मना किया जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत विधि
निर्जला एकादशी के दिन सबसे पहले स्नान करके साफ वस्त्र धारण कर ले और अगर संभव हो तो पीले वस्त्र धारण करे और घर के मंदिर में देसी घी का दीपक जलाए। इसके बाद थोड़ा सा गंगाजल लेकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें और उन्हें फल,फूल और तुलसी पत्र का भोग लगाए। इसके बाद निर्जला एकादशी व्रत कथा और विष्णु भगवान की आरती का पाठ करे या सुने।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी से जुड़ी सबसे लोकप्रिय कथा महाकव्य महाभारत के पांच पांडव भाईयो में से एक महाबली भीमसेन की कहानी है। भीमसेन अपनी अतृप्त भूख के लिए जाने जाते थे। वह एक ही बार में बहुत अधिक मात्रा में भोजन ग्रहण कर सकते थे। हालांकि, वह भोजन और पानी की शारीरिक आवश्यकता के कारण अन्य एकादशी के व्रतो का पालन नहीं कर सके।
एक बार भगवान वेदव्यास यानी ऋषि वेदव्यास पांडवो का हाल चाल जानने उनके घर पहुंचे। बातचीत के दौरान भीम ने ऋषि वेदव्यास से कहा कि माता कुंती, भाई धर्मराज युधिष्ठिर, अर्जुन,नकुल और सहदेव सब मुझे एकादशी को व्रत रखने को कह रहे है, परंतु मै अपनी भूख से लाचार होकर ऐसा नहीं कर पा रहा, कृप्या कोई उपाय बताए।
ऋषि व्यास ने भीमसेन से कहा कि वह अन्न या जल ग्रहण न करके निर्जला एकादशी व्रत कर सकते है, क्योंकि निर्जला एकादशी को सबसे बड़ी और सर्वश्रेष्ठ एकादशी माना जाता है और इस एक एकादशी को नियम पूर्वक व्रत करने से सभी एकादशियों का फल मिलता है।
भीमसेन ऋषि वेदव्यास के कहे अनुसार निर्जला एकादशी के व्रत का पालन करने के लिए सहमत हुए और पूरे दिन और रात के लिए भोजन और पानी से परहेज किया। भगवान विष्णु उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें अन्य सभी एकादशी व्रतो के समान लाभ प्रदान किया।
निर्जला एकादशी का पारण
पारण का अर्थ होता है उपवास तोड़ना। एकादशी व्रत के दिन अर्थात द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद एकादशी व्रत का पारण करने का विधान है। द्वादशी तिथि को ही पारण किया जाना आवश्यक है क्योंकि द्वादशी तिथि को पारण न करना अपराध के समान माना जाता है और एकादशी व्रत का फल प्राप्त नहीं होता।
कैसे करें निर्जला एकादशी का पालन
निर्जला एकादशी को हिंदू धर्म को मानने वाले हिन्दुओं द्वारा बड़ी भक्ति और अनुशासन के साथ मनाया जाता है। फिर वे भगवान विष्णु की पूजा करते है और उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके मंत्रो का जाप करते है।
निर्जला एकादशी के व्रत के दौरान, भक्त किसी भी भोजन या पानी का सेवन नहीं करते है। कुछ लोग जो पूर्ण उपवास करने में असमर्थ है, वे दिन में फल और दूध या दूध से बनी वस्तुओ का सेवन कर सकते है।
निर्जला एकादशी का उपवास अगले दिन सूर्योदय के बाद समाप्त होता है, और भक्त प्रसाद का सेवन करके अपना उपवास तोड़ते है, जो भगवान विष्णु को दिया जाने वाला प्रसाद है। प्रसाद में फल, मिठाई और अन्य शाकाहारी व्यंजन शामिल होते है।
निर्जला एकादशी व्रत के लाभ
निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव और भगवान श्री विष्णु जी की कृपा इस व्रत को धारण करने वाले जातक पर हमेशा बनी रहती है और उनके घर में हमेशा सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
निर्जला एकादशी का व्रत रखने वाले जातकों को सभी जाने अनजाने पापों से मुक्ति मिलती है और सन्तान और स्त्री सुख की प्राप्ति होती है। जीवन के हर सुख और मानसिक शान्ति की प्राप्ति होती है और अंत समय में जीवन मरण के मायाजाल से निकलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
निर्जला एकादशी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसे दुनिया भर के हिंदुओं द्वारा बड़े ही भक्ति भाव, श्रद्धा, विश्वास और अनुशासन से मनाया जाता है। यह उपवास और तपस्या का दिन है और माना जाता है कि यह आत्मा को शुद्ध करता है और इस व्रत को करने से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। उपवास के लिए अपार इच्छाशक्ति और समर्पण की आवश्कता होती है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह व्रत धन, स्वास्थ्य, दीर्घायु सहित महान लाभ प्रदान करता है।
Disclaimer- इस लेख में वर्णित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों, मान्यताओं और पंचांग से ये जानकारी एकत्रित कर के आप तक पहुंचाई गई है। उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझ कर ही ले। कृप्या ये जानकारी उपयोग में लाने से पहले अपने विश्वस्त जानकार से सलाह ले लेवें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की उपयोगकर्ता की स्वयं की ही होगी।
यह भी पढ़ें - विष्णु भगवान की आरती