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Som Pradosh Vrat Katha: भगवान भोलेनाथ भरेंगे भंडारे

सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है और इस व्रत को करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और हर प्रकार के ग्रह दोष दूर होकर आरोग्यता और मनोकामना पूर्ति होती है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सोम प्रदोष व्रत का महत्व अद्भुत माना जाता है।

Som Pradosh Vrat Katha: भगवान भोलेनाथ भरेंगे भंडारे

सोम प्रदोष व्रत कथा 

पूर्व काल में एक विधवा ब्राह्मणी प्रत्येक प्रातः ऋषियों की आज्ञा ले अपने पुत्र को साथ लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती। 

भिक्षा में उन्हें जो मिलता, उससे अपना कार्य चलाती और शिवजी का प्रदोष व्रत भी करती थी। 
 
एक दिन जब वह भिक्षा के लिए अपने पुत्र के साथ जा रही थी तो मार्ग में उसे विदर्भ देश का राजकुमार मिला। शत्रुओं ने उसे उसकी राजधानी से बाहर निकाल दिया था और उसके पिता को मार दिया था। 

अतः वह मारा मारा फिर रहा था। ब्राह्मणी उसे अपने साथ ले आई और अपने पुत्र के साथ उसका पालन पोषण करने लगी।
 
एक दिन उन दोनों -राजकुमार और ब्राह्मण बालक ने वन में गंधर्व कन्याओं को देखा। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया परंतु राजकुमार साथ नहीं आया क्योंकि वह अंशुमति नाम की गंधर्व कन्या से बातें करने लगा था। 

दूसरे दिन वह फिर अपने घर से वहां आया जहां अंशुमति अपने माता-पिता के साथ बैठी थी। 
 
एक दिन भगवान शिव ने अंशुमति के माता-पिता को स्वपन में आदेश दिया कि राजकुमार धर्मगुप्त और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। 

भगवान शिव के आदेश को मानते हुए दिन अगले दिन अंशुमति के माता-पिता ने राजकुमार से कहा कि तुम विदर्भ देश के राजकुमार धर्मगुप्त हो। हम भगवान शंकर जी की आज्ञा से अपनी पुत्री अंशुमति का विवाह तुम्हारे साथ कर देते हैं। 

राजकुमार धर्मगुप्त  का विवाह अनुमति के साथ हो गया। बाद में राजकुमार ने गंधर्व राज की सेना की सहायता से विदर्भ देश पर अधिकार कर लिया और ब्राह्मण के पुत्र को अपना मंत्री बना लिया। 

यथार्थ में यह सब उस ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत करने का फल था। बस उसी समय से यह प्रदोष व्रत संसार में प्रतिष्ठित हुआ।

ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से जैसे ब्राह्मणी के, ब्राह्मणी पुत्र और राजकुमार धर्मगुप्त के दिन फिरे, वैसे ही भगवान शिव इस व्रत को धारण करने वाले के भी शीघ्र ही दिन फेरते है। 

शिव जी की आरती 

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलाशा 
धतूर का भोजन, भस्मी मैं वासा 
ॐ जय शिव ओंकारा 
जटा मैं गंगा बहत हैं, गल मुण्डन माला 
शेष नाग लिपटावट, ओढ़त मृगशाला 
ॐ जय ओंकारा 
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी 
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी 
ॐ जय शिव ओंकारा 
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे 
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे 
ॐ जय शिव ओंकारा।। ॐ जय शिव ओंकारा

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