Advertisement

--

Vaibhav Laxmi Vrat Katha: वैभव लक्ष्मी व्रत कथा आरती

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए की जाती है जो कि अपने भक्तों को सभी प्रकार के सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य को देने वाली देवी है। वैभव लक्ष्मी व्रत से पूर्व इस व्रत से जुड़े कुछ नियमों की जानकारी होना आवश्यक है जो कि इस प्रकार से है-

Vaibhav Laxmi Vrat Katha: वैभव लक्ष्मी व्रत कथा आरती
1. यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए। शुक्रवार के दिन सुबह नहा कर शारीरिक रूप से स्वच्छ हो जाना चाहिए।

2. वैभव लक्ष्मी का व्रत शुक्लपक्ष में शुक्रवार से शुरू किया जाता है। इस व्रत को शुक्रवार के दिन ही किया जाता है। इस व्रत को शुरू करने से पहले आप जिस भी मनोरथ सिद्धि के लिए यह व्रत रख रहे है उसकी पूर्ति के लिए आपको 11 या 21 व्रत की मन्नत रखनी पड़ती है। 

आप कोई भी व्रत संख्या की मन्नत रख सकते है जैसे 11, 21, 31, 41, 51 आदि जो कि विषम संख्या रहेगी परंतु हमारे सुझाव से कम से कम 11 और ज्यादा से ज्यादा 21 व्रत की मन्नत रखिएगा क्योंकि मन्नत रखने के बाद श्रद्धा और विश्वास सहित आपको उसे पूरा भी करना पड़ता है।

3. व्रत के दिन सुबह से ही "जय मां लक्ष्मी" "जय मां लक्ष्मी" का उच्चारण मन ही मन करते रहना चाहिए।

4. व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिए। वैभव लक्ष्मी का व्रत करने वाले व्रती को यह व्रत अपने निवास स्थान पर ही करना चाहिए। यदि शुक्रवार के दिन किसी आवश्यक कार्यवश अगर बाहर जाना पड़ता है तो उस शुक्रवार को छोड़कर अगले शुक्रवार को व्रत करें।

किसी शारीरिक अस्वस्थता या महिलाओं में शुक्रवार के दिन माहवारी आदि के कारण उस दिन के व्रत को अगले शुक्रवार को कर सकते है।

5. वैभव लक्ष्मी व्रत की मन्नत के 11 या 21 शुक्रवार पूरे होने पर रीति अनुसार वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन करना चाहिए। मन्नत के आखिरी शुक्रवार को सात कन्याओं को अपने घर पर बुलाएं और उनके चरण धो कर अपने सामर्थ्य अनुसार शुद्ध शाकाहारी खाना खिलाना चाहिए और कुछ वस्त्र और पैसा भी उपहार दे। उन कन्याओं से श्रद्धापूर्वक आशीर्वाद लेना चाहिए।

6. माता लक्ष्मी के अनेकों स्वरूप है और "धनलक्ष्मी स्वरूप" ही "वैभव लक्ष्मी" है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अत्यंत प्रिय है। वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन श्री यंत्र की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

7. व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिए और शाम को व्रत के पूर्ण होने पर मां का प्रसाद लेकर शुक्रवार करना चाहिए। अगर ऐसा न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन करके शुक्रवार करना चाहिए।

वैभव लक्ष्मी व्रत की विधि (Vaibhav Laxmi Vrat Vidhi) 

वैभव लक्ष्मी व्रत को करने से मन में शुद्ध भावना रखते हुए सभी सामग्री को पहले से ही एकत्रित कर ले ताकि पूजा के दौरान आपको बार बार उठना न पढ़े।

सबसे पहले वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा शुरू करने से पहले एक लकड़ी की चौकी (आसन) ले और उस पर साफ लाल कपड़ा बिछा कर उस पर अक्षत (बिना टूटा हुआ साबुत चावल) की ढेरी बना ले और और उस ढेरी पर जल से भरे एक ताम्र कलश (लौटा) स्थापित करना चाहिए।

उस कलश पर एक कटोरी में सोने का गहना या चांदी का सिक्का या नोट या सामान्य सिक्का रखें (अपने सामर्थ्य अनुसार देख ले, सभी या जो भी उपलब्ध हो)।

चौकी के आसन पर माता लक्ष्मी जी का प्रिय श्रीयंत्र, लक्ष्मी जी की फोटो या प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए।

इस सामग्री के साथ ही लाल गुलाब का फूल या लाल गुलाब के अभाव में लाल रंग का कोई फूल भी रख दे।

अब आसन पर गाय के शुद्ध घी या देसी घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए और अगरबत्ती को भी प्रज्वलित करना चाहिए।

उसके बाद मन में श्रद्धा भाव से माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए उन्हें अपने पूजा स्थल में पधारने का निमंत्रण देना चाहिए।

वैभव लक्ष्मी व्रत का प्रसाद

इस व्रत कथा को शुरू करने से पहले माता लक्ष्मी जी की भोग के रूप मई अर्पित करने के लिए आप  अपने रसोईघर में बनी दूध और चावल की खीर या हलवा, या बाहर की बनी कोई भी मिठाई और पांच तरह के फल उपयोग में ले सकते है।

उसके बाद एकाग्रचित मन से लक्ष्मी माता का ध्यान रखते हुए वैभव लक्ष्मी व्रत कथा और आरती का पाठ करना चाहिए। आरती के पश्चात परिवार में प्रसाद को वितरित करना चाहिए।

जो भी नर या नारी इस तरह से विधि विधान पूर्वक इस तरह से पूजा करता है, माता वैभव लक्ष्मी उससे शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है और अपने प्रिय भक्त की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति बहुत शीघ्र ही परिपूर्ण कर देती है।

    || वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा ||

वैभव लक्ष्मी कथा: Vaibhav Lakshmi Vrat Katha in Hindi 

एक बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ साथ रहते थे और एक दूसरे का साथ देते थे। पर नए जमाने के लोगो का स्वरूप, रहन सहन का ढंग ही अलग सा है।

किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन कीर्तन, भक्ति भाव, दया और परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए है। 

शहर में बुराइयां बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी डकैती जैसे बहुत से गुनाह शहर में होते थे।

कहावत है कि हजारों निराशाओं में एक आशा की किरण छिपी होती है। इस तरह इतनी सारी बुराईयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।

ऐसे ही अच्छे लोगों में राधा और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। राधा धार्मिक प्रवृत्ति की और संतोषी थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था।

राधा और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे।उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।

राधा की गृहस्थी इसी तरह खुशी खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि कर्म की गति अटल है। विधाता के लिखे लेख कोई नही समझ सकता है। इंसान का नसीब पल भर में उसे राजा से रंक बना देता है और रंक को राजा।

राधा के पति के पूर्व जन्म के कर्म भोगने के लिए बाकी रह गए होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा। 

इसलिए वह गलत रास्ते पर चला गया और करोड़पति होने की बजाय रोड़ पति बन गया। यानि कि रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी हालत हो गई थी उसकी।

शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस गांजा जैसी बुराइयां फैली हुई थी। उनमें राधा का पति भी फंस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। 

जल्द पैसे वाला बनने  की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने , सब कुछ रेस जुए में गंवा दिए थे।

इसी तरह एक वक्त ऐसा भी था कि वह सुशील पत्नी राधा के साथ मजे में रहता था और प्रभु भजन में सुख शांति से जीवन व्यतीत करता था। 

इसके बजाय अब घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गए और राधा को पति की गालियां खाने का वक्त आ गया था।

राधा सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ। किंतु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रखकर दुःख सहने लगी। 

कहा जाता हैं कि सुख के पीछे दुःख और दुख के पीछे सुख आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आएगा ही, ऐसी आशा के साथ राधा प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी।

इस तरह राधा असहाय दुख सहते सहते प्रभु भक्ति में समय बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी।

राधा सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर वक्त कौन आया होगा? फिर भी द्वार पर आए हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली राधा ने खड़े होकर द्वार खोला।

देखा तो सामने एक मांजी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थी किंतु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज दिख रहा था। उनकी आंखों में से मानो अमृत बह रहा थे। 

उनका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था। उनको देखते ही राधा के मन में अपार शांति छा गई।

वैसे राधा इन मांजी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर राधा के रोम रोम में आनंद छा गया। राधा आदर के साथ मांजी को घर के अंदर ले आई। 

घर में बैठाने के लिए कुछ भी नहीं था, अत: राधा ने सकुचा कर एक फटी चादर पर उनको बैठाया।

मांजी ने कहा-क्यों राधा! मुझे पहचाना नहीं?

राधा ने सकुचा कर कहा- मां! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति प्रतीत हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूंढ रही थी, वे आप ही है। पर मैं आपको पहचान नहीं पाई।

मांजी ने हंसकर कहा-क्यों! भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन कीर्तन होते है, तब मैं भी वहां आती हूं। वहां हर शुक्रवार को हम मिलते है।

पति जब से गलत रास्ते पर चला गया था, तब से राधा बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नही जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाने में भी उसे शर्म लगती थी। उसने दिमाग पर जोर दिया, पर यह मांजी याद नही आ रही थी।

तभी मांजी ने कहा- तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी! अभी तू दिखाई नही देती थी, इसलिए मुझे लगा कि कहीं तू बीमार तो नहीं हो गई है? ऐसा सोचकर मैं तुझे मिलने चली आई हूं।

मांजी के अति प्रेम भरे शब्दों से राधा का हृदय पिघल गया। उसकी आंखों में आसूं आ गए। मांजी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देखकर मां जी राधा के नजदीक सरकी और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेरकर सांत्वना देने लगी।

मांजी ने कहा- बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे होते है। सुख के पीछे दुख आता है, तो दुख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? अपने दुख की बात मुझे सुना। इससे तेरा मन भी हल्का हो जाएगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जाएगा।

मांजी की बात सुनकर राधा के मन को शांति मिली। उसने मांजी से कहा, मां! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियां थी। मेरे पति भी सुशील थे। भगवान की कृपा से पैसे की बात में भी हमें संतोष था। हम शांति से गृहस्थी चलते ईश्वर भक्ति में अपना समय व्यतीत करते थे।

यकायक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति की बुरे लोगों से दोस्ती हो गई। बुरी संगति की वजह से वे शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि खराब आदतों के शिकार हो गए और उन्होंने सब कुछ गंवा दिया और हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गए।

यह सुनकर मांजी ने कहा- सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख आता ही रहता है। ऐसा भी कहा जाता है कि "कर्म की गति न्यारी होती है। हर इंसान को अपने कर्म भुगतने पड़ते है। इसलिए तू चिंता मत कर।

अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएंगे। तू तो मां लक्ष्मीजी की भक्त है। मां लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार है। 

वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती है। इसलिए तू धैर्य रखकर मां लक्ष्मीजी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा। 

"मां लक्ष्मीजी का व्रत" करने की बात सुनकर राधा के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा- मां! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है? वह मुझे समझाइए। मैं यह व्रत अवश्य करूंगी।

मांजी ने कहा- बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे "वरलक्ष्मी व्रत" या "वैभव लक्ष्मी व्रत" भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वह सुख-संपति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर मांजी "वैभव लक्ष्मी व्रत" की विधि कहने लगी।

बेटी! वैभव लक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-साधा व्रत हैं। किंतु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते है, अत: उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहनों की हल्दी- कुमकुम से पूजा करो। बस! व्रत हो गया। 

अगर सिर्फ सोने के गहनों की पूजा करने से फल मिल जाता तो सभी आज लखपति करोड़पति बन गए होते। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। व्रत के उद्यापन की विधि भी शास्त्रीय होनी चाहिए। तभी यह "वैभव लक्ष्मी व्रत" पूर्ण फल देता है।

यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। सुबह मैं स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन मन में "जय मां लक्ष्मी" "जय मां लक्ष्मी" नाम का स्मरण करते रहो। किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुंह रहे, इस तरह आसन पर बैठ जाओ।

सामने पाटा (लकड़ी की चौकी) रखकर उसके ऊपर साफ रूमाल रखो। हो सके तो लाल रंग का रूमाल रखो। रूमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रखकर, कलश पर एक कटोरी रखो। 

उस कटोरी में सोने का एक गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जलाकर धूप जलाकर रखो।

मां लक्ष्मीजी के बहुत स्वरूप है और मार लक्ष्मीजी को "श्रीयंत्र" अति प्रिय है। अत: वैभव लक्ष्मी व्रत विधि अनुसार करते वक्त सर्वप्रथम "श्रीयंत्र" और लक्ष्मीजी के विविध स्वरूपों का सच्चे भाव से दर्शन करो। 

उसके बाद लक्ष्मी स्तवन का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपयों का हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजन करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। 

शाम को कोई मीठी चीज बनाकर उसका प्रसाद रखो। मीठी चीज न हो तो गुड़ या शक्कर भी चल सकता है।

फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से "जय मां लक्ष्मी" बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प मां के सामने करो और आपकी जो भी मनोकामना हो, वह पूरी करने की मां लक्ष्मीजी से विनती करो।

फिर मां का प्रसाद बांट दो और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रखो, सिर्फ प्रसाद खाकर शुक्रवार करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। 

अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन ग्रहण कर सकते हो बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपए ले लो।

कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को दाल दो। इस तरह लक्ष्मी माता की कथा और शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। 

इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर होकर आदमी मालामाल हो जाता है। संतान न हो तो उसे संतान प्राप्ति होती है। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।

राधा यह सुनकर आनंदित हो गई। फिर पूछा- मां! आपने वैभव लक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किंतु इसका उद्यापन किस तरह करना चाहिए? यह भी कृपा करके बतलाइए?

मांजी ने कहा- ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो, उतने शुक्रवार यह वैभव लक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए, वह में तुझे बताती हूं। आखिरी शुक्रवार खीर या नैवेद्य (प्रसाद) रखो। पूजन विधि जैसे हर शुक्रवार को करते है, वैसे ही करनी चाहिए। 

पूजन विधि के बाद श्रीफल (नारियल) फोड़ों और काम से काम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके वैभव लक्ष्मी व्रत की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सबको खीर का प्रसाद देना चाहिए।

फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभव लक्ष्मी स्वरूप मां लक्ष्मी जी की छवि (फोटो या प्रतिमा) को प्रणाम करें। मां लक्ष्मीजी का यह स्वरूप वैभव देने वाला हैं। 

प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से मां की प्रार्थना करते वक्त कहें कि हे मां धनलक्ष्मी! हे मां वैभव लक्ष्मी! मैने सच्चे मन से आपका "वैभव लक्ष्मी व्रत" पूर्ण किया है, तो हे मां! हमारी (जो मनोकामना की हो, वह बोलो) मनोकामना पूर्ण करो।

हम सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। 

आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत जो करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना। हे  मां! आपकी महिमा अपरम्पार हैं।

इस तरह मां की प्रार्थना करके मां लक्ष्मी जी के धनलक्ष्मी स्वरूप की भाव से वंदना करो।

मांजी के मुख से वैभव लक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर राधा भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो अब सुख का रास्ता मिल गया है। 

उसने आंखे बंद कर के मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि है वैभव लक्ष्मी मां! मैं भी मांजी के कहे मुताबिक श्रद्धा से शास्त्रीय विधि अनुसार वैभव लक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूंगी और व्रत का शास्त्रीय विधि अनुसार उद्यापन भी करूंगी।

राधा ने संकल्प करके आंखे खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गई? यह मांजी दूसरा कोई न था...साक्षात लक्ष्मी जी ही थी। 

राधा लक्ष्मी जिनकी भक्त थी, इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए मां लक्ष्मी देवी मांजी का स्वरूप धारण करके राधा के पास आई थी।

दूसरे दिन शुक्रवार था। सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर राधा मन ही मन श्रद्धा से और पूरे भाव से जय मां लक्ष्मी जय मां लक्ष्मी का मन ही मन स्मरण करने लगी। 

सारा दिन किसी की चुगली नहीं की। शाम हुई तब हाथ पांव मुंह धो कर राधा पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले सोने के बहुत से गहने थे, पर पतिदेव ने गलत रास्ते पर चल कर सब गहने गिरवी रख दिए थे।

पर नाक की चुन्नी बच गई थी। नाक की चुन्नी निकाल कर, उसे धो कर राधा ने कटोरी में रख दिया। सामने पाटे (चौकी) पर रूमाल रखकर मुट्ठी भर चावल का ढेर किया, उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। 

उसके ऊपर चुन्नी वाली कटोरी रखी। फिर मांजी ने कहा था, वैसे ही शास्त्रीय विधि अनुसार वंदन, स्तवन, पूजन किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रखकर वैभव लक्ष्मी व्रत किया।

यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने राधा को मारा नहीं, सताया भी नही। राधा को बहुत आनंद हुआ। उसके मन में वैभव लक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा और बढ़ गई।

राधा ने पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक वैभव लक्ष्मी व्रत किया। इक्कींसवे शुक्रवार को मांजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दी। 

फिर माता जी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी- हे मां लक्ष्मी! मैने आपका वैभव लक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है।

है मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हम सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। 

आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत जो करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सबको सुखी करना। है मां! आपकी महिमा अपार है, ऐसा बोलकर लक्ष्मी जी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।

इस तरह शास्त्रीय विधि पूर्वक राधा ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरंत ही उसे फल मिला। उसका पति गलत रास्ते पर चला गया था, वह अच्छा आदमी हो गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। 

मां लक्ष्मी के वैभव लक्ष्मी व्रत के प्रभाव से उसको ज्यादा मुनाफा होने लगा। उसने तुरंत राधा के गिरवी रखे गहने छुड़वा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख शांति छा गई। 

वैभव लक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी शास्त्रीय विधि पूर्वक वैभव लक्ष्मी व्रत करने लगी।

हे मां धनलक्ष्मी! आप जैसे राधा पर प्रसन्न हुई, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख शांति देना। जय धनलक्ष्मी मां! जय वैभव लक्ष्मी मां!

वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व (Importance of Vaibhav Laxmi Vrat)

वैभव लक्ष्मी व्रत को करने से व्रती को जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है।

वैभव लक्ष्मी व्रत को करने वाले के मन की समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।

वैभव लक्ष्मी व्रत को करने वाले व्रती को धन-संपति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पारिवारिक जीवन में आ रही परेशानियों और बाधाओं से छुटकारा मिलता है।

दांपत्य जीवन का सुख प्राप्त होता है और रिश्तों में मधुरता बनी रहती है।

अगर किसी की शादी में अनावश्यक देरी हो रही हो या शादी न हो रही  हो तो उसे अवश्य ही वैभव लक्ष्मी व्रत रखना चाहिए और इस व्रत के प्रभाव से जल्द ही शादी के संयोग बन जाते है और मनपसंद विवाह संपन्न हो जाता है।

लक्ष्मी माता की आरती (Laxmi Mata ki Aarti)

मैया जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता 
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता 
ओम जय लक्ष्मी माता 
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता  
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता 
ओम जय लक्ष्मी माता 
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता 
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता
ओम जय लक्ष्मी माता 
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता 
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता 
ओम जय लक्ष्मी माता  
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता 
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता 
ओम जय लक्ष्मी माता 
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता 
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता 
ओम जय लक्ष्मी माता 
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता 
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ओम जय लक्ष्मी माता 
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता 
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता 
ओम जय लक्ष्मी माता